Wednesday, November 14, 2007

रामेश्वरम रामसेतु रक्षा मंच द्वारा तीव्र आंदोलन की योजना

रामेश्वरम रामसेतु तोड जाने के विरुद्ध आंदोलन को तीव्र करते हुवे रामेश्वरम रामसेतु रक्षा मंच ने अखिल भारतीय आंदोलन की रुपरेखा घोषित की है :-
१ रामेश्वरम रामसेतु रक्षा धर्म यौद्धा भर्ती अभियान यह अभियान १२ अक्तूबर २००७ से प्रारंभ होगा ।
इसके अंतर्गत अखिल भारतीय स्तर पर रामेश्वरम रामसेतु की रक्षा के लिए तैयार लोगो को भर्ती किया जाएगा । हिन्दुओ के अलावा, पर्यावरण रक्षक , समुद्री सीमा की सुरक्षा तथा भारत का वास्तविक विकास चाहने वाले, समुद्री उत्पादों का व्यापार करने वाले ( मछुवारे, उनके परिवार और रामेश्वरम रामसेतु तोड जाने पर जिनका व्यवसाय बंद होने वाला है ऐसे व्यापारी ) तथा पर्यटन व्यवसाय से संबंधित बंधू भी आंदोलन मे भर्ती किये जायेंगे।
२ २५अक्तूबर २००७ तक रामेश्वरम रामसेतु रक्षक दल के सदस्य हर रोज हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे।
३ २६ अक्तूबर को सार्वजनिक रुप से वाल्मीकि जयंती मनाई जायेगी ।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, प्रतिनिधि सभा मार्च, २००७ - प्रस्ताव

परियोजना मार्ग बदले - राम सेतु बचाए

भगवन राम द्वारा समुद्र पार करने के लिए निर्मित रामसेतु से जुडी करोडो हिन्दुओ की भावनाओ को निर्लज्जता पूर्वक कुचलते हुवे भारत सरकार के अधिकारी विवादास्पद 'सेतु समुद्रम नहर परियोजना ' के क्रियान्वन की हठ पर अडे हुवे हैं । अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा उनकी इस दुराग्रही व उतावली प्रवुत्ति की तीव्र भर्त्सना करती है। केन्द्रीय जहाजरानी मंत्री द्वारा सेतु समुद्रम नहर परियोजना का विरोध करनेवालों को 'राष्ट्रविरोधी' करार देने वाले वक्तव्य का भी प्रतिनिधि सभा विरोध करती है।
प्रतिनिधि सभा मंत्री महोदय सहित अन्य अधिकारियो को यह स्पष्ट कर देना चाहती है कि मिश्र के लगभग ४,५०० वर्ष पुराने पिरामिदो तथा लगभग २,६०० वर्ष पुरानी चीन की विशाल दिवार से भी अधिक प्राचीन, भारत की युगों पुरानी थाती तथा विश्व की प्राचीनतम मानव निर्मित संरचना को विनष्ट करने के घृणित मंसुबो की गंध इस समूची परियोजना से आती है। इसकी पुष्टि इस तथ्य से भी हो जाती है कि उक्त नहर परियोजना के निर्माण हेतु अधिकारियों के समक्ष किसी भी धरोहर को नष्ट न करते हुवे कई वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध थे। उन्होने न केवल पर्यावरण विदों द्वारा उठाई गई आपत्तियों तथा उस क्षेत्र के हजारो मछुहारो के गंभीर आजीविका संकट को नजर अंदाज़ किया है वरन समुंद्री पुरातत्व विज्ञान विशेषज्ञों से परामर्श करना भी ठुकरा दिया है। पर्यावरण विदों तथा भू विग्यानिको का कहना है कि इस अवरोध के विनष्ट होने से अपने समुद्र तट पर भविष्य मे सुनामी जैसी आपदाओ का संकट खड़ा हो जाएगा। प्रतिनिधि सभा यह स्मरण करना चाहती है कि औद्योगीकरण तथा मेट्रो रेल जैसी विकास परियोजनाओ के कारण उत्पन्न होने वाले खतरों से आगरा के ताजमहल तथा दिल्ली के कुतुबमीनार जैसे स्थानों को जनता तथा न्यायपालिका के हस्तक्षेप से बचाया गया है। उपर्युक्त दोनो स्थल जहाँ केवल कुछ शताब्दियों पुराने है वहीं रामसेतु की ऐतिहासिकता सह्स्त्रब्दियो पुरानी है ।
प्रतिनिधि सभा सरकार से मांग करती है कि वह भारतीय सविंधान के अनच्छेद '५१ क' के अंतर्गत इस सेतु को सरंक्षित स्मारक घोषित करे तथा भावी अध्ययनों हेतु उसे पुरातत्व विभाग को सौप दे । प्रतिनिधि सभा देशवासियों का आव्हान करती है कि केन्द्र सरकार को इस क्रूर कृत्य का परित्याग करने हेतु विवश करने के लिए तत्काल राष्ट्रव्यापी अभियान प्रारंभ करे ।
इस सभा का सरकार को यह परामर्श है कि वह रामनाथपुरम जिला न्यायालय द्वारा निर्देशित सुझाओ के अंतर्गत एक विशेषज्ञ समिति का अविलम्ब गठन कर उसे परियोजना का वैकल्पिक मार्ग तैयार करने का निर्देश दे , जिससे देश के वाणिज्यिक लक्ष्यों की पूर्ति होने के साथ साथ पवित्र रामसेतु को नष्ट होने से बचाया जा सके।

Saturday, November 3, 2007

सेतु समुद्रम परियोजना देश की अस्मिता को चुनोती



सेतु समुद्रम
प्रकल्प को रामसेतु तोड बिना भी पुरा किया जा सकता है । विद्वानों ने सेतु को बिना क्षति पहुचाए इस योजना को पूरी करने के पांच वैकल्पिक मार्ग सुझाये हैं । लेकिन सरकार हिन्दुओ की आस्था के प्रतीक लाखो वर्ष पूर्व श्रीराम द्वारा निर्मित ऐतिहासिक सेतु को तोड़ने पर आमादा है।

रामसेतु केवल धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक परंपरा का प्रश्न नही है अपितु राष्ट्रीय सुरक्षा, पर्यावरण, सामुद्रिक जेविय जीवन तथा तटीय लोगो के जीविका से जुदा सवाल है।
यह सेतु प्राकुतिक आपदाओ से हमारी सुरक्षा करने मे भी सक्षम है । इसमे स्थित थोरियम का अपार भंडार हमारे देश की सदियों की उर्जा की आवश्यकता पूर्ति कर सकता है। यह सेतु समुद्र की उग्रता को शांत करने मे सक्षम है तथा सुनामी से हमारी सुरक्षा की क्षमता रखता है।
लेकिन सरकार अमेरिका के दबाव मे आकर राम सेतु को तोड़ने पर उतारू है । भारत व श्रीलंका के मध्य का सागर अभी तक अंतर्राष्ट्रीय सागर कानून के मुताबिक ऐतिहासिक क्षेत्र कहलाता है। इस क्षेत्र के जल पर भारत व श्रीलंका का अधिकार है । अमेरिका इस जल क्षेत्र को अंतर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र घोषित करवाना चाहता है क्योंकि वह पहले से ही इस क्षेत्र को ऐतिहासिक क्षेत्र की मान्यता नही देता। यदि सेतु समुद्रम परियोजना श्रीराम सेतु को तोड़कर पूरी की जाती है तो इस मार्ग से सभी देशो के जलयान गुजरेंगे और यह क्षेत्र स्वत: ही अंतर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र हो जाएगा।
केरल के तटों पर थोरियम का विशाल भंडार है । यहाँ दुनिया को ९० प्रतिशत थोरियम है। अब तक इस भंडार पर भारत का अधिकार है । श्रीराम सेतु टूटने पर यह क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र घोषित हो जाएगा फिर इस भंडार पर अमेरिका द्वारा अपनी दादागिरी के बल पर कब्जा किया जा सकेगा।
सेतु समुद्रम परियोजना मी बनने वाली नहर की गहराई कम होने के कारण यहाँ से भारी जलयान नही गुजर सकेंगे । अमेरिका यही चाहता है कि उसकी पनडुब्बियों यहाँ से होकर गुजर सके। नहर से अमेरिकी पनडुब्बियों का गुजरना या रहना भारत व श्रीलंका दोनो देशों की आंतरिक सुरक्षा के लिए घातक है।

विध्वंशक है सेतु समुद्रम परियोजना
सुनामी विशेषज्ञों तथा अंतर्राष्ट्रीय भू - वैज्ञानिको व पर्यावरण विदों के अनुसार यह योजना असंगत ही नही विध्वंसक है। राष्ट्रीय पर्यावरण शोध संस्थान (नेरी ) ने स्पष्ट किया है कि रामसेतु को तोड़ने से भारत व श्रीलंका के मध्य सागर के उत्तरी भाग पाक जल डमरू मध्य के पर्यावरण पर बहुत गहरा असर पड़ेगा जो हमारे देश के लिए घातक होगा। इस क्षेत्र मे सन १८६० से २००० के बीच आये चक्रवातों के अध्ययन के आंकडो से पता चलता है कि इस क्षेत्र मे चार वर्षो मे एक बार चक्रवात आता है। ये चक्रवात अपने साथ भारी मात्रा मे मिटटी व पत्थरो को खाडी से ले आते हैं। रामसेतु इन चक्रवातों से केरल के तटों की रक्षा करता रहा है। 'नेरी' ने भीषण आपदाएं आने की संभावना व्यक्त करते हुए रामसेतु को क्षति नही पहुचाने की राय दी है।

'नेरी' द्वारा किये गए अध्ययनों से यह बात पता चलती है कि दिसम्बर २००४ मे आये सुनामी तूफान ने तमिलनाडु तथा केरल मे असर दिखाया था । पर्यावरण और वन मंत्रालय के लिए २००५ मे भू - गर्भ विभाग द्वारा किये गए सर्वेक्षण मी कहा गया कि सुनामी लहरों से तमिलनाडु और अंडमान निकोबार के तटीय क्षेत्रो मे तबाही हुई थी तथा बंगाल की खाडी मे जलीय जीवों को नुकसान पंहुचा था , यदि श्रीराम सेतु नही होता तो यह तबाही बहुत ज्यादा मात्र मे होती । श्रीराम सेतु ने सुनामी की तीव्रता को बहुत कम कर दिया था।

तिरुवनंतपुरम स्थित भू - गर्भ केन्द्र के डॉ सी पी राजेंद्रन ने रामसेतु को तोड़ने से पर्यावरण को होने वाली क्षति की चेतान्वानी देते हुवे कहा है कि सेतु समुद्रम योजना से प्रकुतिक भू - क्षरण प्रक्रिया मे बाधा उत्पन्न हो जायेगी । इस योजना के माध्यम से हम एक और प्रकुतिक आपदा को बुलावा दे रहे हैं ।

विश्व के जाने मने सुनामी विशेषज्ञ कनाडा के डॉ ताड एस मूर्ति ने सेतु समुद्रम योजना के विध्वंशकारी परिणामो पर विस्तृत और गंभीर विचार व्यक्त किये हैं।

डॉ ताड ने कहा कि हिंद महासागर मे २००४ मे आई सुनामी के समय केरल का दक्षिणी भाग इसके प्रकोप से रामसेतु के कारण ही बचा था। यदि श्रीराम सेतु को तोड़कर नहर निकली गई तो सुनामी को सीधा मार्ग मिल जाएगा तथा वह और अधिक तीव्रता से दक्षिण समुंद्री तट पर तबाही मचा सकती है।

रामसेतु रक्षा के लिए आंदोलन

करोडो हिन्दुओ की आस्था के प्रतीक , विश्व की प्राचीनतम धरोहर , ऐतिहासिक रामसेतु को तोड़ने के षड्यंत्र को सफल नही होने देने तथा इसकी रक्षा व सरक्षण कर राष्ट्रीय धरोहर घोषित करवाने के लिए विश्व हिन्दू परिषद ने सरकार को राष्ट्र व्यापी आंदोलन की चेतावनी दी है । गत ९ मार्च से ११ मार्च २००७ तक सम्पन्न राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक मे "परियोजना मार्ग बदले - श्री रामसेतु बचाए" प्रस्ताव पारित कर, सरकार द्वारा 'सेतु समुद्रम नहर योजना' के क्रियान्वन की निंदा करते हुवे सरकार से श्रीराम सेतु को भारतीय संविधान के अनुच्छेद '५१ क ' के अंतर्गत संरक्षित स्मारक घोषित करने तथा आगामी अध्ययनों के लिए पुरातत्व विभाग को सोपने की मांग की।

तत्कालीन राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम ने भी एक कार्यक्रम मे श्रीराम सेतु की उपयोगिता को स्वीकार किया था।

अनेक पर्यावरण विदों , भू वैज्ञानिको, समुद्री सर्वेक्षको तथा सुनामी विशेषज्ञों ने भी श्रीराम सेतु को तोड़ना देश के लिए घातक आपदाओ का बुलावा बताया है। सरकार के इस अडियल रवैये के विरोध मे भाजपा तथा सभी संतो ने राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाने की घोषणा की है। विहिप ने भी संतो का पुरा साथ देने का निर्णय लिया है। देश के मुस्लिम तथा ईसाई समुदाय ने भी श्रीराम सेतु को तोड़ने का विरोध किया है क्योकि यह सेतु केवल हिन्दू आस्था का केन्द्र ही नही , हमारे देश को भीषण आपदाओ से बचाने वाला रक्षक भी है।


-- "पाथेय कण" पत्रिका से साभार







Thursday, November 1, 2007

सरकारी रामसेतु परियोजना आख़िर है क्या ?

अभी जो जहाज सिंधु सागर (अरब सागर) से दक्षिण पूर्व एशिया या आगे की यात्रा करते है, वे गंगा सागर (बंगाल की खाडी) जाने के लिए श्रीलंका का चक्कर लगाते है। यह चक्कर न लगे इसके लिए विचार किया गया कि भारत और श्रीलंका के मध्य मे जो समुन्द्र है वहाँ से जहाजो को निकाला जाये ।
सबसे पहले एक अंग्रेज़ ने वर्ष १८६० मे एक नहर के जरिये ऐसा मार्ग बनाने की योजना प्रस्तुत की थी। लगभग उसी समय यूरोप को एशिया से जोड़ने के लिए मिश्र के समुन्द्र मे स्वेज नहर बनाने की योजना भी बनी ।
भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ने वाली इस नहर पर १८५९ मे काम भी शुरू हो गया । दस सालो मे १७१ किमी लंबी यह नहर बन कर तैयार हो गई ।
इसी प्रकार उत्तर और दक्षिण अमेरिका के बीच तथा प्रशांत और अटलांटिक महासागर को जोड़ने वाली पनामा नहर (८० किमी) भी सन १९१४ मे बन गई ।

समुद्र मे नहर बनाने के जरुरत इसलिए होती है कि इससे समुद्र की गहराई जहाजो के आने जाने लायक हो जाती है ।
भारत और श्रीलंका के बीच जो नहर बनाईं जा रही है उसके लिए समुद्र तल के खुदाई की जानी है, ताकि जहाजो के आवागमन के योग्य गहराई बन सके। यह नहर बन जाने से जहाजो को ४६५ से ८३५ किमी की यात्रा कम करनी पड़ेगी तथा यात्रा मे २१ से ३६ घंटो के समय की बचत होगी।
सबसे पहले सन १९५५ मे केन्द्र सरकार ने इस योजना को मंजूरी दी , लेकिन काम शुरू नही हो सका, १९८३ तथा ९६ मे भी इस पर विचार विमर्श हुवा किन्तु काम शुरू नही हुवा ।
वर्तमान केन्द्र सरकार ने अमेरिकी दबाव मे २ जुलाई २००५ को इस १६७ किमी लंबी तथा ३०० मीटर चोडी सेतु समुद्रम परियोजना पर कार्य आरंभ किया।

"पाथेय कण " पत्रिका से साभार



रामसेतु की ऐतिहासिकता

श्री राम सेतु की ऐतिहासिकता

भारत का एक लम्बा व गौरवशाली इतिहास रहा है।
हमारे प्राचीन धार्मिक ग्रंथ रामायण, महाभारत, पुराण आदि मे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा श्रीलंका पर चढाई के समय रामसेतु निर्माण का स्पष्ट उल्लेख है।

रामायण काल
वेदिक ग्रंथो के पश्चात वाल्मीकि रामायण सबसे प्राचीनतम ग्रंथ है।
इस ग्रंथ मे उल्लेख है कि श्रीराम की सेना लंका के विजय अभियान पर चलते समय जब समुद्र तट
पर पहुची तब विभीषण के परामर्श पर समुद्र तट पर डाब के आसान पर लेटकर भगवान राम ने समुद्र से मार्ग देने का आग्रह किया था। महाभारत मे भी इस घटना का उल्लेख है।
रामेश्वरम मे आज भी प्रभु श्रीराम चन्द्र की शयन मुद्रा मूर्ति है। समुद्र से रास्ता मांगने के लिए यहीं पर रामचंद्र जी ने तीन दिन तक प्राथना की थी।
भारत के दक्षिण मे धनुष्कोती तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिम मे पम्बन के मध्य ३५ किमी चोडा समुद्र मे पट्टी के रूप मे उभरा भू भाग ही वह रामसेतु है, जिसे ईसाईयों ने अड़म्स ब्रिज और मुसलमानों ने आदम पुल कहा ।
शास्त्रों मे श्रीराम सेतु के आकार के साथ साथ इसकी निर्माण प्रक्रिया का भी उल्लेख है।

शोधों के आधार पर
न केवल लोक मान्यताओ बल्कि पुरातत्वविदों के शोधों से भी यह सिद्ध हो गया है कि इस सेतु का काल साडे सत्तर लाख वर्ष पुराना है जो रामायण काल के समकालीन बैठता है।
भारत सरकार के भू विज्ञान विभाग ने इस सेतु को मानव निर्मित माना है।
इन्सायक्लोपेडिया ब्रिटेनिका मे इस सेतु का वर्णन इस प्रकार है :- आदम का पुल जिसे रामसेतु भी कहा जाता है , जो कि उत्तरी पश्चिमी श्रीलंका तथा भारत के दक्षिणी पुर्वी तट से दूर रामेश्वरम के समीप मन्नार के द्वीपों के मध्य 'उथले स्थानों की श्रुंखला' है।
नीदरलैंड मे सन १७४७ मे बने मालाबार बोबन मानचित्र मे रामन कोविल के नाम से रामसेतु को दिखाया गया है। इस मानचित्र का १७८८ का संस्करण आज भी तंजावूर के सरस्वती महल पुस्तकालय मे उपलब्ध है।
जोसेफ मार्क्स नाम के ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ता ने इस मानचित्र मे श्रीलंका से जोड़ने वाले रामसेतु को 'रामार ब्रिज' कहा है।
अमेरिका के अन्तरिक्ष अनुसंधान संस्थान 'नासा' ने उपग्रह से खीचे गए चित्र १९९३ मे ने दिल्ली के प्रगति मैदान मे "राष्ट्रीय विज्ञान केन्द्र" की प्रदर्शनी मे उपलब्ध कराये गए थे।
इनमे श्रीराम सेतु का उपग्रह से लिया गया चित्र भी था।
यह चित्र नासा ने १४ दिसम्बर १९६६ को जेमिनी -११ से अन्तरिक्ष से प्राप्त किया था। इसके २२ साल बाद आई.एस.एस १ ए ने तमिलनाडु तट पर स्थित रामेश्वरम और जाफना द्वीपों के बीच समुद्र के भीतर भूमि पट्टिका का पता लगाया और उसका चित्र लिया। इससे अमेरिकी उपग्रह के चित्र की पुष्टि हुई।






" पाथेय कण" पत्रिका से साभार